गुरुवार, 4 सितंबर 2025

मन

मन 
**
कभी-कभी
पढ़ते-पढ़ते
लिखने लगता हूँ,

और कभी-कभी
लिखते-लिखते
पढ़ने लगता हूँ।
अजीब हूँ मैं भी,
करना क्या होता है,
और करने क्या लगता हूँ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें