शनिवार, 26 जुलाई 2025

प्रेम और परछाई

 प्रेम और परछाई
अरुण साथी


उसने कहा —
अब घटता जा रहा है
तुम्हारा प्रेम,

वैसे ही जैसे
दोपहरी को बढ़ाते सूरज के
साथ-साथ घटती जाती है
परछाई।

मैंने कहा —
तपती दोपहरी में
देह और परछाई का
एकाकार ही तो प्रेम है...
बस।
 प्रेम और परछाई
अरुण साथी

उसने कहा —
अब घटता जा रहा है
तुम्हारा प्रेम,

वैसे ही जैसे
दोपहरी को बढ़ाते सूरज के
साथ-साथ घटती जाती है
परछाई।

मैंने कहा —
तपती दोपहरी में
देह और परछाई का
एकाकार ही तो प्रेम है...
बस।

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