सोमवार, 2 जनवरी 2012

अपना प्यारा गांव।



(पटना एयरपोर्ट पर इंतजार करते हुए गढ़े गए कुछ शब्द...)


यह दुनिया कुछ अजीब है
पता नहीं, पर अनमना सा हूं
भीड़ है, पर मैं अकेला हूं
कुछ अजीब सा एटेनशन है
लोगों के चेहरे पर
जैसे रोबोट है सब।

यहां पर सभी हैं अति सभ्य
या जैसे सहजता छोड़
सभी ने ओढ़ लिया हो अतिवाद।



पर यहां भी है एक बच्चा
जो इधर उधर भाग रहा है
पर लोग उसकी मां को धूर रहें है
संभालती क्यों नहीं?

आफ्हो
यह रोबोटिक दुनिया
और अपना प्यारा गांव।

14 टिप्‍पणियां:

  1. अब रोबोट होने में ही आधुनिकता है ....... पैसे की बैटरी और सूऊउन सूऊऊन गाड़ी और मृत से चेहरे

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  2. आफ्हो
    यह रोबोटिक दुनिया
    और अपना प्यारा गांव।
    kya varnan kiye......wah.

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  3. श्रीमान जी यही नजारा आपको राजधानी एक्सप्रेस और पंचसितारा होटलों में दिखेगा। सभी साले हीन भावना से ग्रसित लोग होते हैं। मैं तो खुब आनंद उठाता हूं, मुझे ऐसे देखते हैं जैसे कोई अजायबघर का आदमी हो । गरियाता भी हूं अरुण भाई , कभी आप मेरे साथ चले मजा आयेगा ।

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  4. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

    कल 04/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, 2011 बीता नहीं है ... !

    धन्यवाद!

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  5. आफ्हो
    यह रोबोटिक दुनिया
    और अपना प्यारा गांव।

    bahut hi sundar rachna .... simaon me bati darti yaha mat ja wo mat kar ....yaha nahi hai wo kash ke khet ....aur hari bhari pakhadandiya ...isi liye to yaada aata hai mera pyara gav

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  6. गजब का कोंट्रास्ट!! भीड़ और अकेलापन, गाँव और रोबोटिक दुनिया!! अद्भुत!!!

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  7. बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है आपने मशीनी समाज का प्रतिबिम्ब.. और जितना खुलकर उभरा है यह चित्र, उतना ही गाँव का आकर्षण बढ़ा है!! मगर सचाई तो सचाई है!! आभार!!

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  8. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  9. दुनिया मैं आज सब रोबोट होते जा रहे हैं ...
    अच्छी सोच से उपजी रचना ....

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  10. सुन्दर रचना , सुन्दर भाव, बधाई.

    पधारें मेरे ब्लॉग meri kavitayen पर भी, मुझे आपके स्नेहाशीष की प्रतीक्षा है.

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