जिंदगी अब कहाँ किसी
सिरहाने टिकती है।
हर एक रिश्तों की अब
धुंधली सी तस्वीर दिखती है।।
◆कोई होकर भी अपना,
कभी अपना न हुआ।
किसी की जिंदगी गैरों
की खातिर ही बिकती है।।
◆जाने क्या रिश्ता है
अपना उनसे।
वो पगली मुझे देख कर
बेवजह हंसती है।।
◆देखा है अलग अलग
चेहरे रिश्तों के यहाँ,
सुना है रिश्ते भी अब
ब्यूटी पार्लरों में सजती है।।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (05-08-2016) को "बिखरे मोती" (चर्चा अंक-2425) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'