सोमवार, 8 मार्च 2021

पंख

#पंख
पहले पंख लगाए
फिर चलना सीखा
फिर पंख फैलाये
फिर उड़ना सीखा

फिर सपने संजोए
आसमान को छूने की
फिर संघर्ष किया
बुलंदी तक उड़ने की

उसे नागवार लगा
उससे ऊंचा वह
कैसे उड़ सकती है

उसने पर कतर दिए..

11 टिप्‍पणियां:

  1. आह , पुरुष की मानसिकता बदलने में सदियां लग जायेगी ।

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    1. पुरुष की मानसिकता नहीं, व्यक्ति की। (महिला सहित)।
      इसे लिखने वाला भी तो पुरुष ही है।

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  2. सच पंख कतरने में बड़े माहिर हैं लोग..ऐसी मानसिकता कभी नही बदलती.. अनोखी कृति..समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी पधारें..

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  3. पंख हैं तो फिर से उग आएँगे। हौसला चाहिए।
    पंख हों तो अपना आसमान होगा...
    क्यों किसी के हाँ या ना पर जियें?

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