मंगलवार, 17 सितंबर 2019

तितलियाँ

तितलियाँ
(अरुण साथी)
सबसे पहले कैद की
गयी होंगी
तितलियाँ!

फेंका गया होगा जाल
छटपटाई भी होंगी
तितलियाँ!

फिर कैद से उन्मुक्त होने
अपने पंखों को
फड़फड़ाई भी होंगीं
तितलियाँ!

फिर उत्कट आकांक्षा में
तोड़ दिए गए होंगे उनके पंख
तो रोई भी होंगी
तितलियाँ!

फिर लोकतंत्र के मसीहा
ने आकर मुक्त किया
और आह्लाद से दिग दिगंत
जयकार हुआ
तो क्या इस राजनीति को
समझ भी पायीं होंगी
तितलियाँ....

3 टिप्‍पणियां:


  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना गुरुवार १९ सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. बहुत गहरा तंज और क्षोभ सटीक सार्थक सृजन।

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  3. काश की ये पक्ष भी वो जालिम समझ पाता।
    गहरी चोट। उत्तम


    पधारें अंदाजे-बयाँ कोई और

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