जब भी वह मिलती है
हौले से मुस्कुरा,
आहिस्ते से मचलती है!
वैसे ही जैसे,
सूरज की लाली से
सूर्यमुखी खिलती है!
वैसे ही जैसे,
भौरे की गुनगुन से
कली की पंखुड़ी खुलती है!
वैसे ही जैसे,
चाँद की चांदनी से
चकोर मचलती है!
वैसे ही जैसे,
मोर नृत्य से
मोरनी पिघलती है!
वैसे ही जैसे,
प्रेमपुलक
गजगामिनी निकलती है!
वैसे ही जैसे,
प्यासी धरा से
मेघ मिलती है!
वैसे ही जैसे
धूप के ताप से
बर्फ पिघलती है!
और
वैसे ही जैसे,
सूर्य मिलन को
फीनिक्स पंक्षी
की अभीप्सा जलती है..
हौले से मुस्कुरा,
आहिस्ते से मचलती है!
वैसे ही जैसे,
सूरज की लाली से
सूर्यमुखी खिलती है!
वैसे ही जैसे,
भौरे की गुनगुन से
कली की पंखुड़ी खुलती है!
वैसे ही जैसे,
चाँद की चांदनी से
चकोर मचलती है!
वैसे ही जैसे,
मोर नृत्य से
मोरनी पिघलती है!
वैसे ही जैसे,
प्रेमपुलक
गजगामिनी निकलती है!
वैसे ही जैसे,
प्यासी धरा से
मेघ मिलती है!
वैसे ही जैसे
धूप के ताप से
बर्फ पिघलती है!
और
वैसे ही जैसे,
सूर्य मिलन को
फीनिक्स पंक्षी
की अभीप्सा जलती है..
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा आज शनिवार (03-12-2016) के चर्चा मंच
जवाब देंहटाएं"करने मलाल निकले" (चर्चा अंक-2545)
पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर
जवाब देंहटाएंअति सुंदर ।
जवाब देंहटाएं