रविवार, 27 मार्च 2011

भोज और कुत्ते।


फेंके गए जूठे पत्तलों को लेकर, 
मचा था घमाशान।

कई थे,
जो अपनी भूख के लिए
कभी भौंक 
तो कभी झप्पट रहे थे
एक दूसरे पर।

काफी शोर-शराबा था।
जोर जोर से बजते  
लाउडीस्पीकर 
और
चकाचौंध रौशनी थी।

और थी,
प्रतिस्पर्धा
सभ्य कहलाने की।

इस सबके के बीच किसी ने नहीं देखा
कि
पूरी के उन फेंके गए टुकडों के लिए
झपट रहे थे 

कुत्ते और 
आदमजात
साथ साथ.....


4 टिप्‍पणियां:

  1. .यही हमारी असलियत है जिन्दा रहने की कशमकश .

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  2. सत्य वचन मगर ये व्योस्था बनायीं भी हमने ही है स्वीकारी भी हमने है तो भुगतना भी हमें ही पड़ेगा..जब तक हम खुद न बदलें..

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  3. पूरी के उन फेंके गए टुकडों के लिए
    झपट रहे थे

    कुत्ते और
    आदमजात
    साथ साथ.....

    दृष्टि की सही पकड़ है आपकी कलम में ..
    बहुत अच्छी रचना .....

    घमाशान - घमासान

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