शनिवार, 5 मई 2012

जिंदा रहूंगा अमर होकर

खौफ मुझकों न कभी तुफां का रहा,
मैं जलता हूं अपने जुनूं का असर लेकर।

जिंदगी से है मोहब्बत, पर मौत से भी यारी है,
ये समुद्र लौट जाओं तुम अपना कहर लेकर।।

वे और होगें जो मरते हैं गुमनाम होकर,
इस जहां में मैं जिंदा रहूंगा, अमर होकर।

2
कभी कभी जिंदगी भी दगा देती है, देर तक साथ रह, सजा देती है।
बेमुरौव्वतों की वस्ती में साथी, मौत भी आकर कभी वफा देती है।।

3
गुरवतों के दिन भी तुमने शिददत से निभाई यारी।
साथी, बेमुरौव्वत जहां में तुमको नहीं आती दुनियादारी।।

5 टिप्‍पणियां:

  1. कभी कभी जिंदगी भी दगा देती है, देर तक साथ रह, सजा देती है।
    बेमुरौव्वतों की वस्ती में साथी, मौत भी आकर कभी वफा देती है।।...क्या बात है

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  2. तुफां का खौफ जिसे नहीं रहता ..वही अमर होता है..अति सुन्दर..

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  3. @जिंदगी से है मोहब्बत, पर मौत से भी यारी है,
    ये समुद्र लौट जाओं तुम अपना कहर लेकर।

    वाह!

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  4. वाह बहुत खूब ...........


    हम अगर अब भी हकीकत जान लें
    क्या अजब हैं इस तड़प की नस को ही पहचान लें |...अनु

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  5. "जिंदगी सजा देती है पर मौत से भी यारी है "बहुत सुन्दर पंक्ति |उत्तम रचना |
    आशा

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