गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

बदनाम होने का हैसला चाहिए।


यूं ही विचारों कें समुद्र में उतर कर शब्दों को ढुंढने और
संजोने की आदत से लाचार कुछ लिख लेता हूं,
आपसे साझेदारी कर रहा हूं।















1
बदनाम होने का हैसला चाहिए।

अगर उल्फत है तो कुर्बान होने का भी हौसला चाहिए।
बुर्कानशी जहां में बदनाम होने का भी हौसला चाहिए।।

रोज मरते हैं यहां अकबर, सजता है मातमें बज्म भी।
बेखुद जिंदगी जी, गुमनाम मरने का भी हौसला चाहिए।।

वो जो जीते है फकत वहीं जिंदगी नहीं होती।
मुफ्लीसी में भी जीने का हौसला चाहिए।

(बज्म-सभा)
(बेखुद-आनन्दमग्न।)












2
एक मुस्लस्ल जिंदगी ही बोझ बनती है यहां,
सात जन्मांे के कसम की बात ही बेमानी है।
तुम कहो तो कर भी लूं, वादा मगर जब टूटेगा,
ये सनम यह इश्क की बदनामी है।।

3
रूठ कर जब मिलती हो सनम तो आफताब लगती हो,
मशक्कतो-मेहनत से हासिल खिताब लगती हो।







16 टिप्‍पणियां:

  1. बदनामी से तो सभी डरते हैं , बदनाम होकर अस्तित्व बनाये रखने का हौसला होना चाहिए

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  2. बहुत बढ़िया प्रस्तुति
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  3. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  4. मशक्कतो-मेहनत से हासिल खिताब लगती हो।bahut achchin line....

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  5. वो जो जीते है फकत वहीं जिंदगी नहीं होती।
    मुफ्लीसी में भी जीने का हौसला चाहिए।

    बहुत उम्दा..... बेहतरीन पंक्तियाँ रची हैं....

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  6. रूठ कर जब मिलती हो सनम तो आफताब लगती हो,
    मशक्कतो-मेहनत से हासिल खिताब लगती हो,umda sher

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  7. सभी शेर दिल को उछालकर बाहर ला देते हैं !

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