मौत से पहले...
बहुत भचर-भचर करते हो
मार दिए जाओगे
एक दिन
उन्हीं लोगों की तरह..
लगी होगी एक-आध गोली
पीठ में, सीने में
या कनपट्टी के आसपास कहीं..
बीच सड़क पे
बिखर जायेगा तुम्हारी रगो
का खौलता हुआ खून
और लहू का लाल रंग
काली तारकोल से मिलकर
गडमड रंग का हो जायेगा...
हाँ, कुछ लोग आएंगे
सहानुभूति जताएंगे
पर कुछ लोग वहीं
लाश के सिरहाने ही
गाली भी देंगे
कुछ बुरा,
कुछ भला कहेंगे..
क्यों और किसके लिए
यह सब करते हो...
उपरोक्त आत्मीय
वचनों के बीच के
अंतर्मन में
नाद गूँज उठा
"मौत से पहले कौन मरा है?"
"मौत आने पर कौन बचा है..?"
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