सोमवार, 17 जनवरी 2011

डर है की तुम डर नहीं रहे हो






नहीं नहीं
वैसे समय में
जब
सब
कर रहें हों उपक्रम
तुम्हें चुप कराने का
तुम चुप मत रहना,,

नहीं नहीं
वैसे समय में 
जबकि
सल्तनत के बादशाह
देकर लोकतंत्र की दुहाई
तेरी जुवान सिल देना चाहतें हों
तुम जोर जोर से चिल्लाना,,

नहीं नहीं
वैसे समय में
यह सोंच कर 
कि कहीं तुम भी कहलाओ
बागी
एक आवाज लगाना,,

नहीं नहीं
तुम डर मत जाना

क्योंकि
डर तो वे रहें है 
कि
तुम डर नहीं रहे हो..............

रविवार, 9 जनवरी 2011

पाती प्रेम की




तेरे सौन्दर्यबोध में

मैंने बहुत से शब्द ढूंढे

अपनी भावनाओं को 

कोरे कागज पर बारंबार

उकेरा...

शब्द शर्मा जाते 
हर बार...।

फिर इस तरह किया मैने 

अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त

गुलाब की एक अबोध पंखुड़ी को 

लिफाफे में बंद कर 

तुम्हें भेज दिया।.


प्रियतम तुम हो ..............



प्रियतम तुम हो
सुबह का सूरज
जिसकी आभा से खिलता रहै
जीवन का फुल
सावन की मादक बून्द
जिसके स्पशZ से
भींग जाता है
अन्र्तमन।



पुरबा बयार
जो सांसों में आविष्ट हो
तृषित जीवन को करती है
तृप्त।


अन्तत:
तुम हो तो है
जीने की सार्थकता
और
मृत्यु के आलिंगन का आन्नद भी.....

शनिवार, 1 जनवरी 2011

तलाक (चुटकी)


पत्नी पीड़ित पति ने 

तलाक का खर्चा पूछा

वकील साहब ने कहा एक हजार

भड़ककर पति महोदय ने कहा 

वाह सरकार

शादी में पंडित ने खर्च कराये

कुल रूपये चार

तलाक में आप लेगें एक हजार।

वकील ने तपाक से कहा

बिल्कुल सही कह रहे हो

और

सस्ते काम का परिणाम ही 

तो सह रहे हो।