रोज डे पे बीबी को गुलाब जो दिया।
मुफ्त का ही आफत मोल ले लिया।।
बोली
इतने सालो तक तो दिया नहीं, वह हड़क गई।
लाल गुलाब को देख सांढ़िन की तरह भड़क गई।।
जरूर किसी कलमुंही की नजर लगी है आपको।
तभी यह सब फितुर सूझा है मुन्ना के बाप को।।
मैंने कहा
डार्लिंग, अब जमाना हाई-फाई हो रहा है।
पुराना सामान अब बाय बाय हो रहा है।।
अब तो लोग रोज डे पर प्रेम का प्रदर्शन कर रहे है।
पत्नी को छोड़ फेसबुक, ट्युटर पे कईयों पर मर रहे है।
वैसे में मैं यह रोज लेकर जब आया।
फिर भी तुमको यह क्यों नहीं भाया।।
बोली
प्यार को गुलाबों से तौल कर बताते नहीं है।
जाओ जी, जताते वहीं जो निभाते नहीं है।
मुफ्त का ही आफत मोल ले लिया।।
बोली
इतने सालो तक तो दिया नहीं, वह हड़क गई।
लाल गुलाब को देख सांढ़िन की तरह भड़क गई।।
जरूर किसी कलमुंही की नजर लगी है आपको।
तभी यह सब फितुर सूझा है मुन्ना के बाप को।।
मैंने कहा
डार्लिंग, अब जमाना हाई-फाई हो रहा है।
पुराना सामान अब बाय बाय हो रहा है।।
अब तो लोग रोज डे पर प्रेम का प्रदर्शन कर रहे है।
पत्नी को छोड़ फेसबुक, ट्युटर पे कईयों पर मर रहे है।
वैसे में मैं यह रोज लेकर जब आया।
फिर भी तुमको यह क्यों नहीं भाया।।
बोली
प्यार को गुलाबों से तौल कर बताते नहीं है।
जाओ जी, जताते वहीं जो निभाते नहीं है।
वाह !
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंप्यार को गुलाबों से तौल कर बताते नहीं है।
जवाब देंहटाएंजाओ जी, जताते वहीं जो निभाते नहीं है।
....वाह...बहुत सटीक...
पर प्यार कभी कभी जताना भी पडता है। मजेदार कविता।
जवाब देंहटाएंहा हा हा ! इसलिये हम तो ज़ताने मे कंजूसी करते हैं ! अच्छी हास्य कविता !
जवाब देंहटाएंप्यार को गुलाबों से तौल कर बताते नहीं है.....theek hi to bolin......
जवाब देंहटाएंहा हा :-)
जवाब देंहटाएंजो जताते हैं निभाते नहीं ... उनको कहिये निभाएंगे भी जरूरो जैसे अभी तक निभाया है ... हा हा मस्त लाजवाब रचना ..
जवाब देंहटाएंवाह!
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