अब कहां अंधेरों से डर लगता है?
साथ रहा इतना, की घर लगता है।।
तेरी जुल्फों की छांव बहुत है शकून के लिए।
बिछड़ा तो, फिरूंगा दर-व-दर लगता है।।
अमावश की रात, मिले थे हम-तुम अचानक।
उस रात की न होती सुबह, हर पहर लगता है।।
छुपा लेता है आगोश में अंधेरा, भला-बुरा सब।
इसपे भी है मोहब्बत का असर लगता है।।
साथ रहा इतना, की घर लगता है।।
तेरी जुल्फों की छांव बहुत है शकून के लिए।
बिछड़ा तो, फिरूंगा दर-व-दर लगता है।।
अमावश की रात, मिले थे हम-तुम अचानक।
उस रात की न होती सुबह, हर पहर लगता है।।
छुपा लेता है आगोश में अंधेरा, भला-बुरा सब।
इसपे भी है मोहब्बत का असर लगता है।।
बहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएंसाथ रहा इतना …
जवाब देंहटाएंवाह !!
छुपा लेता है आगोश में अंधेरा, भला-बुरा सब।
जवाब देंहटाएंइसपे भी है मोहब्बत का असर लगता है ..
खूबसूरत .. और मतले का शेर तो लाजवाब है ...