बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

अब कहां अंधेरों से डर लगता है?

अब कहां अंधेरों से डर लगता है?
साथ रहा इतना, की घर लगता है।।

तेरी जुल्फों की छांव बहुत है शकून के लिए।
बिछड़ा तो, फिरूंगा दर-व-दर लगता है।।

अमावश की रात, मिले थे हम-तुम अचानक।
उस रात की न होती सुबह, हर पहर लगता है।।

छुपा लेता है आगोश में अंधेरा, भला-बुरा सब।
इसपे भी है मोहब्बत का असर लगता है।।

3 टिप्‍पणियां:

  1. छुपा लेता है आगोश में अंधेरा, भला-बुरा सब।
    इसपे भी है मोहब्बत का असर लगता है ..
    खूबसूरत .. और मतले का शेर तो लाजवाब है ...

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