गुरुवार, 1 अगस्त 2013

किसान की छाती

धरती की छाती पर बुन आया है किसान
अपने बेटी के ब्याह की उम्मीद..
उगा आया है खेत में
कुछ रूपये
मालिक के मूंह पर मारने को
जिससे दरबाजे पर चढ़
मालिक रोज बेटी-रोटी करता है...

और इस साल भी
पैरों में फटी बियाई की तरह
फटे खेत को देख
फट रहा है किसान का कलेजा..

अगले साल फिर से
खेतों बोयेगा किसान
एक उम्मीद
एक सपने
और एक नई जिंदगी की आश

सोंचों
घरती की छाती चौड़ी होती है
या कि किसान का.....





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