धरती की छाती पर बुन आया है किसान
अपने बेटी के ब्याह की उम्मीद..
उगा आया है खेत में
कुछ रूपये
मालिक के मूंह पर मारने को
जिससे दरबाजे पर चढ़
मालिक रोज बेटी-रोटी करता है...
और इस साल भी
पैरों में फटी बियाई की तरह
फटे खेत को देख
फट रहा है किसान का कलेजा..
अगले साल फिर से
खेतों बोयेगा किसान
एक उम्मीद
एक सपने
और एक नई जिंदगी की आश
सोंचों
घरती की छाती चौड़ी होती है
या कि किसान का.....
अपने बेटी के ब्याह की उम्मीद..
उगा आया है खेत में
कुछ रूपये
मालिक के मूंह पर मारने को
जिससे दरबाजे पर चढ़
मालिक रोज बेटी-रोटी करता है...
और इस साल भी
पैरों में फटी बियाई की तरह
फटे खेत को देख
फट रहा है किसान का कलेजा..
अगले साल फिर से
खेतों बोयेगा किसान
एक उम्मीद
एक सपने
और एक नई जिंदगी की आश
सोंचों
घरती की छाती चौड़ी होती है
या कि किसान का.....
बो आई उम्मीद ही जिलाए हुए है तमाम कठिनाईयों के बावजूद!
जवाब देंहटाएंधरतीपुत्र को नमन!
aabhar
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंaabhar
हटाएंवाह कितना सुंदर लिखा है आपने. अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंआज का सच और उस किसान के लिए एक और लंबा इंतज़ार कभी ना खत्म होने वाला
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