गुरुवार, 22 अगस्त 2013

नेता जी उवाच-नाच जमूरे नाच

चुनाव आते ही नेता धर्म की डुगडुगी बजा रहंे हैं।
जमूरे की तरह हमको अपने ईशारे पर नचा रहें हैं।

कहीं टोपी पहन, हमको ही टोपी पहना रहें हैं।
तो कहीं रोटी की जगह शंख फुकबा रहें हैं।

मंहगाई, भूख और भ्रष्टाचार हमसब भूल जा रहें है।
लोमड़ी बन नेता हमारी रोटियों छीन कर खा रहंे हैं।।

बांटो और राज करो का ब्रिटिश फॉर्मुला नेता आजमा रहें है।
गांधी, भगत सिंह और नेताजी की कुर्बानियों को हम भूल जा रहें है।।





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