इस सरकारी भवन के दरवाजे पर खड़ा होते ही अति-उत्साह के साथ आकर एक बच्चे ने ताला खोला और झट से हाथ मिलाया। पर यह क्या? वह ईशारे से चलने के लिए कह रहा था। ओह! यह बच्चा मूक-बधिर है। उसके साथ ही कई मूक बधिर बच्चे एक कमरे में बैठ कर पढ़ रहे थे। यह शिक्षा विभाग का कार्यालय था। बभनबीघा गांव में स्थित इस बीआरसी भवन में इसी तरह के बच्चों को पढ़ना, लिखना और समझने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है।
यहां अति उत्साहित बच्चों ने ईशारों को समझ अपना नाम, पता सब कुछ कॉपी पर लिखने लगा। वहीं प्रशिक्षक श्रणव ने बताया कि इनकी सीखने की क्षमता बहुत प्रबल होती है और यहां अभी डेढ़ माह के लिए 35 बच्चे आवासीय रहकर प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे है।
बिहार शिक्षा परियोजना के तहत चल रहे इस कैंप में उन बच्चों का भविष्य संबर रहा है जिन्हें यदि यहां यह प्रशिक्षण नहीं मिलता तो जीवन की इस रेस में रेंगते नजर आते...
इन बेजुबां बच्चों को कविता के माध्यम से मैंने शब्द दी है...
जीवन तो दिया मुझे भी
पर नहीं दिया सुनने
और बोलने का हक।
यानि कि
नहीं दिया जीने का अधिकार,
फिर भी मैं तुमसे नाराज कहां हूं!
जीवन दिया ,
तो जीना ही होगा।
और जीना है,
तो जीतना ही होगा....
शायद इसी जीत में
तुम अपनी जीत देखेगो
मेरे भगवान...
भावमय करते शब्दों का संगम
जवाब देंहटाएंधन्यवाद..
हटाएंइन बच्चों पर ईश्वर की कृपा बनी रहे ...यूँ ही आगे बढ़ने के अवसर मिलते रहे ....अरुण जी आपके मन के भावों को नमन ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद.. इन रचनाओं की प्रेरणा इन्हीं शब्दों से मिलती है...
हटाएंसादर
उस दर्द को महसूसना और बयाँ करना हर किसी के बस मे नही हो्ता और उसे आपने बखूबी चित्रित किया है।
जवाब देंहटाएंआभार, इसी तरह हौसला बढ़ाते रहें..
हटाएंहमको मन की शक्ति देना ...भावमय करते शब्द ...सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंआभार, इसी तरह हौसला बढ़ाते रहें..
हटाएंमौन के शब्द...मर्म को जगाते
जवाब देंहटाएंaabhar rashmi ji
हटाएंजनोपयोगी परियोजना की जानकारी, सुन्दर आलेख और भावपूर्ण रचना!
जवाब देंहटाएंdhanyabad.....
हटाएंशिक्षा का अधिकार तो मूक बधिर के लिये भी तो है. बिहार सरकार का सराहनीय कदम. आपकी कविता भी बहुत सुंदर है.
जवाब देंहटाएंजीवन दिया ,
जवाब देंहटाएंतो जीना ही होगा।
और जीना है,
तो जीतना ही होगा....
क्या बात है ....!!