साथी
शनिवार, 13 अक्तूबर 2012
दो नंबरी औरत..
अपनी पहचान पाने
देहरी से बाहर
जब उसने कदम रखा
कदम दर कदम
बढ़ी मंजिल की ओर
हौसला भी बढ़ा,
पर समाज ने दे दी
नई पहचान
दो नंबरी....
शायद औरत होने की यह सजा थी
या
देहरी के बाहर कदम रखने की...
यही वह सोंच रही है गुमशुम..
2 टिप्पणियां:
mridula pradhan
13 अक्तूबर 2012 को 9:58 am
पर समाज ने दे दी
नई पहचान
दो नंबरी.... gahri soch.....
उत्तर दें
हटाएं
उत्तर
उत्तर दें
वन्दना
14 अक्तूबर 2012 को 12:36 am
गहन अभिव्यक्ति
उत्तर दें
हटाएं
उत्तर
उत्तर दें
टिप्पणी जोड़ें
अधिक लोड करें...
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
पर समाज ने दे दी
उत्तर देंहटाएंनई पहचान
दो नंबरी.... gahri soch.....
गहन अभिव्यक्ति
उत्तर देंहटाएं