पुतले तो जल गए, रावण जिंदा रह गया।
देख कर हाल आदमी का, राम शर्मिंदा रह गया।।
सब कुछ सफेद देख, धोखा मत खाना साथी।
बाहर से चकाचक, अंदर से गंदा रह गया।।
फैशन के दौर में गारंटी की इच्छा ना कर साथी।
अब तो दुर्गा से भंरूये भी दुआ मांगते, धंधा मंदा रह गया।
जो दिखता है सो बिकता है, पूजा, पंडाल, यज्ञ, हवन।
बेलज्जों की कमाई का साथी धंधा, चंदा रह गया।
दीन, धर्म, ईमान का चोखा है व्यापार।
सौदागरों के हाथों का साथी, औजार निंदा रह गया।।
नया दौर का नया चलन है, देखो आंख उघार।
रावण ही पुतला जला कर कहता, अब तो यह धंधा रह गया।।
अब राम कहाँ जो रावण को मार सके
जवाब देंहटाएंबहुत सही ... बेहद सशक्त भाव लिये उत्कृष्ट लेखन
जवाब देंहटाएंअरुण जी ...सही कहा हैं आपने ...आज कल हर त्यौहार धंधे के रंग में रंग नज़र आता है
जवाब देंहटाएंकरारा ..बहुत खूब.. अच्छी लगी..
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