शनिवार, 7 अप्रैल 2012

गजल


न हिंदू लगता है, न मुस्लमान लगता है।
अजीब शय है वह, इंसान लगता है।।

यूं तो फरीस्ते ही सभी है इस कब्रिस्तान में।
अदब से जो शख्स शैतान लगता है।।

रोज हंसता है वो धोकर अपने दामन से लहू।
लूटा हो जैसे गैरों का अरमान लगता है।।

खुदा भी वही है, खुदी भी उसी के पास।
बोल दो, वह बड़ा ही बदगुमान लगता है।।





9 टिप्‍पणियां:

  1. आसान भाषा में तीखे शेर कहना कोई आपसे सीखे. बहुत खूब...!!

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  2. बहुत सशक्त रचना, सुन्दर भावाभिव्यक्ति, आभार.

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  3. बहुत बढ़िया सशक्त रचना...
    सुन्दर अभिव्यक्ति.....

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  4. न हिंदू लगता है, न मुस्लमान लगता है।
    अजीब शय है वह, इंसान लगता है।।..

    बहुत खूब ... मतला ही इतना लाजवाब है की बार बार दोहराने का मन करे ,,, बहुत खूब ...

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  5. न हिंदू लगता है, न मुस्लमान लगता है।
    अजीब शय है वह, इंसान लगता है।।

    ये करतूत तो हमारी देन है जो इंसानों को हिंदू और मुसलमान बना देती है.

    बहुत सुंदर रचना. बधाई

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  6. @ अजीब शय है वह, इंसान लगता है।।

    सब कुछ है बस यही नहीं है ....
    शुभकामनायें आपको !

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  7. रोज हंसता है वो धोकर अपने दामन से लहू।
    लूटा हो जैसे गैरों का अरमान लगता है।।

    वाह बहुत खूब

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