चलो फिर से आंधियों को हवा देते है,
चलो हर एक चरागों को बुझा देते है!!
ये रौशनी ही फसाद करती है "साथी",
चलो इस गांव में अंधेरे को बसा देते है!!
है गर कोई गुस्ताख़ चरागों को बचाने वाला,
चलो सबसे पहले हम उसको ही मिटा देते है!!
जरा भी खलल न हो सके अंधेरों की दुनिया में,
चलो अब इस जमाने से आदमी को मिटा देते है!!
अरुण साथी (09/08/2018)
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १० अगस्त २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत ख़ूब ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब शेर हैं सभी ...
जी बहुत जबरदस तंज!!
जवाब देंहटाएंइस जमाने से आदमी को ही मिटा देते हैं ।
जितने ये दिख रहे इंसान असंख्यात
क्या ये आदमी है या आदमियत से भटकी परछाईंया।
अप्रतिम।