शुक्रवार, 31 मई 2013

आंख में पानी नहीं रहा (गजल)


इस दौर में आदमी के आंख में पानी नहीं रहा।
आदमी है, आदमीयत की निशानी नहीं रहा।।

सज गए है घर-गली कागज के फूल से।
बाजार की खुश्बू का असर रूहानी नहीं रहा।।

आप तो मोहब्बत भी करते है सौदे की तरह तौल कर।
अब तो मोहब्बत में लौला-मजनूं की रूमानी नहीं रहा।।

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