झुग्गी-झोपड़ियों से
निकलते धुंऐं को कभी
मौन होकर देखना...
उसमें कुछ तस्वीर
नजर आऐगी..
जो आपसे
बोलेगी, बतियायेगी....
पूछेगी एक सवाल
आखिर यहां भी तो रहते हैं
तुम्हारी तरह ही
हाड़-मांस के लोग
फिर क्यों रोज
इनके घरों से मैं नहीं निकलता?
फिर क्यों दोनों सांझ
इनका चुल्हा नहीं जलता.....?
मर्मस्पर्शी......
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार.
हटाएंvery very touching ,shows the reality of millions of people.
हटाएंगहन और सार्थक प्रश्न ...!!
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति ...!!
शुभकामनायें ।
बहुत आभार.
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंबहुत आभार.
हटाएं:(
जवाब देंहटाएंare bhai what happen to your love story series .
जवाब देंहटाएंकुछ वाजिब प्रश्न करती रचना ... छूती है दिल को ...
जवाब देंहटाएंaabhar
हटाएंबहुत कुछ कहती हुई..
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