सुनो जिंदगी
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यह ठीक है कि
तुम सीढ़ी हो
और सांप भी
यह भी ठीक ही है कि
सौ घरों में एक-एक कदम
चलकर दूरी तय करना होता है
यह भी ठीक है कि
एक पासे से तुम
सीढ़ी के सहारे
अर्श पे पहुंचा देती हो
तो दूसरे पासे से
सांप के सहारे
फर्श पे
पर सुनो जिंदगी
यह ठीक नहीं कि
पासे भी तुम्हारे पास हो
और चाल भी तुम्हीं चलो
कुछ तो मेरे हिस्से आने दो
सुनो जिंदगी
सीढ़ी और सांप सबकी जिंदगी के हिस्से हैं, ये बात अलग है किसी के कम तो किसी के ज्यादा हिस्से आता है
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
अनोखी जिंदगी की सुंदर परिभाषा..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना ।
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी ... खुद भी तो क़ुदरत के शतरंज का एक मोहरा भर ही तो है बेचारी ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन ,सादर नमन
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