प्रकांड विद्वान
सिद्ध तपस्वी
शिव भक्त
ब्रह्मा वंशज
स्वप्नद्रष्टा
अजर-अमर
होकर भी वह
नायक नहीं
कहलाता है,
एक अहँकार से
हर कोई रावण
हो बन जाता है..
आईये इस दशहरा
अपने अहंकार का
पुतला बनाते है,
अपने ही हाथों
अपने अंदर के
रावण को जलाते है..
अरुण साथी
(विजयादशमी की शुभकामनाएं)
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (02-010-2017) को
जवाब देंहटाएं"अनुबन्धों का प्यार" (चर्चा अंक 2745)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर।
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