आओ मेघ में भींग कर, मजा लें
माँ की डाँट सुने,
बाबू जी के मार का मजा लें...
मेघ में भींग कर आम चुने
मतलू चाचा को छकायें
उनकी गाली सुने
बिजली चमके तो सहम जाये
डरकर आम की पेंड़ को
माँ समझ, लिपट जाये
गिरे आम तो
सबसे पहले झटप जाये
फिर......
आम के पत्ते का
बना कर बाजा, बजा लें
आओ मेघ में भींग कर, मजा लें...
गड्ढों में छपाक-छप कूदें
कादो, मिट्टी को माँ की तरह चूमें
लोट-पोट कर, मन सजा लें
आओ मेघ में भींग कर, मजा लें.....
फिर सर्दी, बुखार हो तो
माँ सरसो तेल गर्म कर
माथे पे लगाए
गर्म दूध में हल्दी मिलाए
डाँट-डाँट कर मुझे पिलाए
घर में उधम मचाए
माँ को फिर सताए
उसकी डाँट को लोरी समझ पचा लें
आओ मेघ में भींग कर, मजा लें
आओ, आओ
जिन्दगी की जद्दोजहद भुलाये
उदास मन को फिर से बहलाये
सूनापन मिटाए
अंदर मरते हुए बचपन को बचा ले
आओ, आओ मेघ में भींग कर, मजा ले
सुन्दर...... बारिश की बूँदें बचपन लौटा लाती हैं ....हम भीगें तो !
जवाब देंहटाएंसुक्रिया
हटाएंबढ़िया :)
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंबारिश और माँ कि यादें ... बचपन की यादें ... दिल को छूती है रचना ...
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