रविवार, 12 जनवरी 2014

मेंहदीं का सुर्ख रंग...और बिखरे छींटे,,,

वे दिलों से खेलने में बड़ी हुनरमंद,
टूटे दिलों से खेलकर भी मजा लेते है।

उनकी मेंहदीं का रंग सुर्ख यूं ही नहीं,
दिल के लहू को वह हथेली पे सजा लेते है।।

क्यूँ कोई साथी इतना मशहूर हो जाये।
कि वह अपनों से दूर हो जाये।
फिसलन और ठोकर भरी राहों पे तो सभी संभलकर चलते है।
तुम सीधी.सपाट राहों पे संभलकर चलना साथी।।

(एक्सप्रेस हायवे जादे खतरनाक होबो हैय भाय जी)
4
क्यूँ हर शख्स की गलतियाँ गिनाते हो साथी।
जहाँ में आदमी बसते हैए पैगम्बर नहीं बसते।
5
क्यूँ किसी को साथी तुम इतना है भाता।
तुम्हे तो बाजीगरी का हुनर भी नहीं आता।।
6
यूँ ही रूठ कर महफ़िल से चली जाती हो। 
कहो तो अब शिकवा किससे करें।।
एक तुम्ही हो जो मुझसे मोहब्बत कर बैठे।
कहो तो अब रुसवा किसको करे।।
7
अपनी वेवफाई का गिला कैसे करूँ
फिर से मोहब्बत का सिलसिला कैसे करूँ
खोकर भी तुमको पाने की आरजू जिन्दा है अभी
तुम्ही कहो की आज भी यह हौसला कैसे करूँ.

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