(दामिनी को समर्पित)
क्या तू मां की कोख से
जनम नहीं लिया..
या कि
तू नहीं जुड़ा था
अपनी मां के
गर्भनाल से
जिससे रिस रिस कर
भर गया जहर तुझमें...
रे हैवान
क्या तेरी मां ने नहीं
पिलाया था दूध
तुझे अपनी छाती का...
या कि तेरी मां ने
नहीं सही थी
प्रसव की असाह्य पीड़ा...
रे हैवान
निश्चित ही तुझे
किसी मां की कोख ने
नहीं जना होगा..
तभी तो तू
नहीं जान सका
कि आखिर
हर औरत में एक मां होती है...
रे हैवान
रे हैवान
रे हैवान
आपकी कविता मन के संवेदनशील तारों को झंकृत कर गई। मेरी कामना है कि आप अहर्निश सृजनरत रहें। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। न्यवाद।
जवाब देंहटाएं:(
जवाब देंहटाएंसंवेदनहीनता की पराकाष्ठा. इसी आशा के साथ कि दामिनी का बलिदान समाज में कुछ बदलाव ला सके.
जवाब देंहटाएंसबसे पहले आपने जो कलाचित्र लगाया है वो ही सारी बात को कह रहा है , बाकी तो आपने जो कहा...हर दिल की बात है .
जवाब देंहटाएंसब इस हादसे से दुखी है
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंनब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामना.
मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
इश्वर की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार.