सुनो प्रेम
अरुण साथी
सुनो प्रेम
अब तुम इस
पार मत आना
चाँद के उस पार
ही अपना घर बसाना
इस पार तो अब
बसेरा है नफरत का..
सुनो प्रेम
इस पार कहीं
धर्म तो कहीं जाति
और कहीं कहीं
औकात से तुम्हें
तौला जाता है
और कहीं तो
प्रेम लव जिहाद
भी हो जाता है..
फिर क्या
आदमी
आदमी को
अब यहाँ भून
के खाता है..
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 06 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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