कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए
कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए
कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए
यहाँ दरख़तों के साये में धूप लगती है
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए
न हो कमीज़ तो पाँओं से पेट ढँक लेंगे
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए
ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही
कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए
वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता
मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिए
तेरा निज़ाम है सिल दे ज़ुबान शायर की
ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए
जिएँ तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले
मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिए
आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख
आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख
घर अँधेरा देख तू आकाश के तारे न देख
एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ
आज अपने बाजुओं को देख पतवारें न देख
अब यक़ीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह
यह हक़ीक़त देख, लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख
वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे
कट चुके जो हाथ ,उन हाथों में तलवारें न देख
दिल को बहला ले इजाज़त है मगर इतना न उड़
रोज़ सपने देख, लेकिन इस क़दर प्यारे न देख
ये धुँधलका है नज़र का,तू महज़ मायूस है
रोज़नों को देख,दीवारों में दीवारें न देख
रख्ह,कितनी राख है चारों तरफ़ बिखरी हुई
राख में चिंगारियाँ ही देख, अँगारे न देख.
मैं जिसे ओढ़ता—बिछाता हूँ
मैं जिसे ओढ़ता—बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ
तू किसी रेल—सी गुज़रती है
मैं किसी पुल—सा थरथराता हूँ
हर तरफ़ ऐतराज़ होता है
मैं अगर रौशनी में आता हूँ
एक बाज़ू उखड़ गया जबसे
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ
मैं तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने क़रीब पाता हूँ
कौन ये फ़ासला निभाएगा
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ
आप ने बहुत कमाल की गज़ले कही हैं
जवाब देंहटाएंआपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।
जवाब देंहटाएंकहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए
जवाब देंहटाएंकहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए
अल्फाजों के साथ इंसाफ किया है, शुभकामनायें
good post
जवाब देंहटाएंबेवकूफ संजय भास्कर
जवाब देंहटाएंयह गजल दुष्यंत की है
ब्लाग स्वामी ने नहीं लिखी है
केवल टिप्पणी मारना है इसलिए कुछ भी मारो गधे
मैं यह बता दूं की ये गजल मेरी नहीं हैं. मैं ने सिर्फ़ प्रस्तूत किया है. यह दुस्यनंत कुमार की गजल है.
जवाब देंहटाएंमैंने तो शिर्सक ही लगाया है-
जवाब देंहटाएं"दुष्यंत कुमार - तीन गजल"
दुष्यंत कुमार जी की बात ही अलग थी...
जवाब देंहटाएंarun ji aapne to dushyn ji ke jivnt lekhn ko fir se jivit kr diyaa. akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आपका स्वर्गीय श्री दुष्यंत साब की गज़लें पढवाने के लिए..
जवाब देंहटाएंवे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे
जवाब देंहटाएंकट चुके जो हाथ ,उन हाथों में तलवारें न देख...
आज के हिंदुस्तान और जन आन्दोलन के लिए कितनी सही उतरती हैं.
अरुण जी, दुष्यंत साहब का साहित्य कौन सा हैं और कहा मिलेगा?
जवाब देंहटाएं