साथी
सोमवार, 31 मई 2010
अन्तराल
अन्तराल
दर्द और हंसी के बीच...
जो जुड़ा था
उसके टूटने से पहले...
टूटना है नये का आगमन
और बीच का अन्तराल
पतझड़
जहां कलरव करते थे विहग
आज है वहां सन्नाटा....
और फिर
इसी अन्तराल में अयेगा वसन्त....
वसन्त
पतझड़
और बीच का अन्तराल....
1 टिप्पणी:
mridula pradhan
19 जुलाई 2010 को 10:01 pm बजे
bahot sunder.
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bahot sunder.
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