सोमवार, 27 जनवरी 2025

पाप–पुण्य

पाप पुण्य 

(अरुण साथी)

गंगा में डुबकी लगा 

नहीं चाहता हूं धो लेना 

अपने हिस्से के पाप को


बजा के घंटी, लगा के टीका 

कम भी नहीं करना चाहता हूं उसे


चाहता हूं अपने हिस्से का पाप 

वैसे ही अपने पास रहे 

जैसे रहता है पुण्य 


फिर चाहता हूं 

चुटकी चुटकी 

पुण्य को जोड़ता रहूं 


और चाहता हूं, अंत में जब 

हिसाब किताब हो तो 

अपने पुण्य का पलड़ा

एक छटांक से ही सही 

भारी हो जाए, बस...

4 टिप्‍पणियां:

  1. इस युग में जहां लोग पाप और पुण्य के बीच बारीकी को अप्रासंगिक मान चुके आप की चार पंक्ति मानवीय चेतना को जागृत करने का प्रयास और अपने कलम को लिखने की वज़ह देने न्याय करने के लिए कलम की ओर से लेखक को धन्यवाद

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