वह भी आदमी ही है
अरुण साथी
हम जहां है, वहीं से हीहमे नीचे देख लेना चाहिए
इसलिए नहीं है कि
यह कोई अनिवार्य शर्त है
बल्कि इसलिए की
नीचे देख लेने भर से ही
हमे ठोकर लगने की संभावना
कम हो जाती है
और इसलिए भी की
नीचे देखने भर से ही
हम देख पाते है
बगैर नीचे देख कर
चलने वालें चोटिल हुए
आदमी को...
और इसलिए भी कि
जब हम, जहां हैं
वहां से नीचे देखते हैं
तो सिर्फ अपनी आंखों से ही
नहीं देखना चाहिए
हमें अपनी संवेदनाओं में उतर कर
भी देख लेना चाहिए..
और इस तरह
देखने पर ही दिखेगा
कि मंदिरों के बाहर
एक रोटी के लिए
तरसता आदमी जैसा एक भिक्षुक भी आदमी ही है
तब कहीं दिखेगा
कि बगैर हाथ-पैर का
लोथड़ा जैसा दिखने वाला
वह आदमी भी
आदमी ही है
और दिखेगा यह भी कि
हाड़ तोड़ मेहनत करता
वह मजदूर जैसा आदमी भी
एक आदमी ही है
और तब हम छोड़ देगें
ईश्वर से हर बात को लेकर
शिकायत करना...
ईश है २०२४ में फिर आयेगा |
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... ज़मीन पे रहना, इसे देखना बहुत ज़रूरी है ...
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