आसन नहीं है पिता होना
कहां आसान है
किसी के लिए
पिता होना
और
आसान कहां है
पिता के लिए
कुछ भी,
यहां तक की रोना भी
कहां रो पाता है पिता
दर्द में, खुल कर अक्सर
कभी कभी जब टूटता है अंदर से
तो रोता है अंदर ही अंदर
और फिर हंसना तो
जैसे पिता के लिए
और भी आसान नहीं
मुश्किलों से लड़ते लड़ते
खुलकर हंसे तो
पिता के लिए
युग हो जाता है
कभी कभी हंस लेता है
पिता,
कठ्ठ हंसी
जैसे कुछ छुपा रखा हो
अपने अंदर
अब कहां आसान है
मुश्किलों से लड़ते
पिता के लिए
सांस तक भी लेना...