साथी
गुरुवार, 4 सितंबर 2025
मन
मन
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कभी-कभी
पढ़ते-पढ़ते
लिखने लगता हूँ,
और कभी-कभी
लिखते-लिखते
पढ़ने लगता हूँ।
अजीब हूँ मैं भी,
करना क्या होता है,
और करने क्या लगता हूँ।
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