साथी
बुधवार, 9 सितंबर 2015
एक निराशावादी कविता
समुन्द्र किनारे
तूफानी तरंगों से
बचते-बचाते
बनाया जिसे
उस घरौंदे को
जाने क्यूँ
मिटा देने का
मन करता है...
बचपन
जवानी
जीवन
और
रेत का घरौंदा
1 टिप्पणी:
Udan Tashtari
9 सितंबर 2015 को 5:42 am बजे
Ahh!!
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