शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

गिरगिट













अपने बेटे को
गिरगिटाधिराज की
उपाधी दिए जाने पर
पिता ने कहा...
मेरा बिटुआ भी
पुरखों का नाम
रौशन करने लगा है...

अब यह भी
नेताओं की तरह
रंग बदलने लगा है

सोमवार, 10 नवंबर 2014

आदमी श्रेष्ठ या गदहा ..
















आदमी को गदहा कहे जाने का
गदहा संध के अध्यक्ष ने
कड़ विरोध जताया है
कहा..

"आदमी ने धर्म-जाति
के नाम पर
भाई को लड़ाया है

राम और रहीम के नाम पर
रक्त बहाया है

हमने पीठ पर पत्थर ढोकर
कमाया और खाया है

इस तरह
चाल, चरित्र और चेहरा
देखकर हमने
खुद को आदमी से बेहतर पाया है....."






शनिवार, 8 नवंबर 2014

बेवफाई

शाम ढलते ही याद आती है वो।
बिछड़ के भी कितना सताती है वो।।
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वो भी एक दौर था, हर शाम उनके नाम थी।
आज भी यूं शाम अपने नाम करवाती है वो।।
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चाहत को न पाने का मलाल आज भी है मुझे।
मेरी इस चाहत पे गुरूर क्यूं न कर पाती है वो।।
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वो बेवफा नहीं है, इतना तो एतवार है मुझको।
फिर सरे महफिल बेवफाई क्यूं जताती है वो।।
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शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2014

धुंआ उठता है..



आंसू मेरे बहे 
भींगे उनके नयन
दर्द मुझकों मिला 
सजी उनकी गजल

न चिंगारी उठी
न आग लगी
फिर भी
जलन है
तपन है
और धुंआ भी उठता है

देखिए
बड़ी नफाशत से
साथी के जिंदगी का
शहर जलता है......

मंगलवार, 21 अक्टूबर 2014

साथी के बकलोल वचन


कुछ
श्रमजीवी मीडिया मजदूर
धन-तरस कहलाते है

इसलिए
धनतेरस पे
खाली हाथ  घर जाते है
बीबी की डांट खाते है
और
बेचारे दांत ही दिखाते है

कल से फिर
छाती तान
काम पे लग जाते है..

(श्रमजीवी को समर्पित । बेशर्म जीवी के तो जत्ते कह्भो ओत्ते कम पडतो..)











Arun sathi

बुधवार, 24 सितंबर 2014

देवी दुर्गा

घर से लेकर बाहर तक, नारी का करते नहीं सम्मान।
फिर दुर्गा पाठ और मूर्ति पूजा का क्यूँ धरते हैं स्वांग।।

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मरती है बेटी कोख में, लुट जाती उसकी अस्मत।
दहेज़ से लेकर कामुकता से करते हैं देवी का अपमान।।


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करते है देवी का अपमान, कि हम है घोर अघोरी।
प्राणवान की पूजा नहीं और मूरत में ढूंढे प्राण।।

रविवार, 14 सितंबर 2014

चलो हिन्दी दिवस मनाते है..

राम-राम, नमस्ते भूल, हाय-हल्लो बतियाते है.
नेता हो या अभिनेता, हिन्दी से सब शर्माते है.
पर हिन्दी दिवस मनाते है...

बच्चों को भी काउ, डाॅग, एप्पल हम सिखलाते है.
इंग्लिश स्कूल भेजकर उनको, अपनी शान बढ़ाते है.
पर हिन्दी दिवस मनाते है..

रामू काका को अंकल कहते, दादा जी को ग्रेन्ड पा.
बाबूजी अब डैडी हो गए, माँ को माॅम बुलाते है.
पर हिन्दी दिवस मनाते है...

मनोहर पोथी, सिलौट, पहाड़ा सब भूल गए.
हम सब भारतवासी अब इंडियन कहलाते है.
चलो हिन्दी दिवस मनाते है.....









शनिवार, 21 जून 2014

माँ, बचपन और मेघ



















आओ मेघ में भींग कर, मजा लें
माँ की डाँट सुने, 
बाबू जी के मार का मजा लें...

मेघ में भींग कर आम चुने
मतलू चाचा को छकायें
उनकी गाली सुने

बिजली चमके तो सहम जाये
डरकर आम की पेंड़ को 
माँ समझ, लिपट जाये
गिरे आम तो
सबसे पहले झटप जाये
फिर......
आम के पत्ते का 
बना कर बाजा, बजा लें
आओ मेघ में भींग कर, मजा लें...

गड्ढों में छपाक-छप कूदें
कादो, मिट्टी को माँ की तरह चूमें
लोट-पोट कर, मन सजा लें
आओ मेघ में भींग कर, मजा लें..... 

फिर सर्दी, बुखार हो तो
माँ सरसो तेल गर्म कर 
माथे पे लगाए
गर्म दूध में हल्दी मिलाए
डाँट-डाँट कर मुझे पिलाए
स्कूल न जाए 
घर में उधम मचाए
माँ को फिर सताए
उसकी डाँट को लोरी समझ पचा लें
आओ मेघ में भींग कर, मजा लें

आओ, आओ
जिन्दगी की जद्दोजहद भुलाये
उदास मन को फिर से बहलाये
सूनापन मिटाए
अंदर मरते हुए बचपन को बचा ले
आओ, आओ मेघ में भींग कर, मजा ले

शुक्रवार, 13 जून 2014

साहेब, बीबी और अच्छे दिन..

47 साल बाद साहेब ने जब 
शपथ पत्र में बीबी की डाला
तो तिवारी बाबा ने भी
लिए सात फेरे 
और 88 साल की उम्र में 
डाल ली वर-माला!

........................................

दिग्गी भी पीछे क्यूं रहते?
स्वर्गवासी बीबी का गम क्यूं सहते?
इसलिए 67 साल में रसपान किया,
भेद खुलने पर 
गुटुर गूं, गुटुर गूं की बात मान लिया..

शनिवार, 7 जून 2014

उल्फ़त यूँ आजमाती है...

सताती है, रुलाती है।
उल्फ़त क्या क्या कराती है?
रूठती है , मनाती है। उल्फ़त ऐसे जताती है।।
रोती है, हँसाती है। उल्फ़त यूँ ही सुहाती है।।
बुलाती है, न आती है। उल्फ़त नखरे दिखाती है।।
मिलती है, न पास आती है। उल्फ़त यूँ आजमाती है।।
जलाती है, बताती है। उल्फ़त में यही भाती है।।
गाती है, बजाती है। उल्फ़त यूँ रिझाती है।।

शुक्रवार, 16 मई 2014

नई सुबह.....नया आगाज

नई सुबह उम्मीद की हो
नई सुबह लाये विश्वास
नई सुबह समता की हो
नई सुबह जगाये आश

नई सुबह रोटी की हो

नई सुबह मिटाये बनवास
नई सुबह में भाईचारा हो
नई सुबह में मिटे सन्त्रश


नई सुबह रोजी की हो

नई सुबह लाये रोजगार
नई सुबह सूरज सा हो
हर घर रौशनी की हो बात

नई सुबह में नई पहल हो

चारो ओर चहल पहल हो
घृणा का नहीं कहीं दखल हो
आओ करें ऐसा आगाज़...
आओ करें ऐसा आगाज़...

रविवार, 11 मई 2014

कुलटा (मातृत्व दिवस पर)

चुपचाप बैठा सोंच रहा हूँ
क्या कुंती को  अधिकार नहीं था
कर्ण को मातृत्व सुख देती.....?

या कि कर्ण का वंचित पुरूषार्थ
दानवीर होकर भी
दम नहीं तोड़ दिया....?

या कि सीता को नहीं था
अधिकार
राजषी प्रसव सुख भोग का...?

या कि कबीर को नहीं था
अधिकार
माँ की ममता का...?

कौन है जिसकी वजह से
सूख जाती है
माँ के छाती का दूध
और
बिलखता रहता है
उसके अपने कोख का जना...
जिगर का टुकड़ा...

कौन है
जिसकी वजह से
आज भी है
कुंती और सीता
सोंच रहा हूँ मैं...






शुक्रवार, 2 मई 2014

प्रेम और ईश्वर

मीरा तब भी थी 
मीरा अब भी है 

कृष्ण के माथे तब भी कलंक लगा
कृष्ण के माथे अब कलंक है 

मीरा तब भी पापिन थी 
मीरा अब भी पापिन है 

प्रेम तब भी पाप था 
प्रेम अब भी पाप है 

प्रेम का तब भी खोजा गया कारण
प्रेम का अब भी खोजा जाता है कारण 

प्रेम का तब भी कोई कारण नहीं था 
प्रेम का अब भी कोई कारण नहीं है 

युग बीते 
ईश्वर तब भी थे
राक्षस अब भी है ....

बुधवार, 30 अप्रैल 2014

क्या खोया.. क्या पाया...?

वह भी क्या दिन थे,
हम साथ-साथ रहते थे।
सुख-दुख सब मिलकर,
एक साथ सहते थे।

चाचा और चाची को,
बड़का बाबू और बड़की माय कहते थे।
अब वो अंकल, आंटी हो गए।
हम दो वेडरूम के फ्लैट ले,
अपनी अलग दुनिया में खो गए।

अब  हमारी लाइफ फास्ट हो गई,
और हमारी समाजिकता लास्ट हो गई।

घर से ऑफिस, ऑफिस से घर, यही लाइफ है।
ऑफिस में बॉस और घर में डांटती वाईफ है।

फिर बच्चों का कैरियर बनाने में
कर्ज ले सबकुछ लगाया,

बचपन से ही उसे ठोक-पीट कर
डाक्टर या इंजिनीयर बनाया,
और इसी सब में उसने भी इंसानियत गंबाया!
और पंख लगते ही उसने भी
अपनी अलग दुनिया बसाया..

अब हम बड़े से फ्लैट
अथवा ओल्ड ऐज होम में
तन्हा बैठा सोंचते हैं
हमने क्या खोया?
हमने क्या पाया?


शुक्रवार, 21 मार्च 2014

कभी कभी उदास होता हूँ....

बस यूँ ही कभी कभी उदास होता हूँ।
कुछ दर्द टीसते है तो छुप के रोता हूँ।।

जिंदगी से गिला भी हो तो क्या होगा।
ख़ुशी वहीँ मिलती है, जहाँ खोता हूँ।।

जिंदगी में जब ग़मों का दौर होता है।
फिर जिंदगी में कहाँ कोई और होता है?

कुछ अपने भी होते है बेगाने की तरह।
कोई बेगाना अपना बना लेता है।।

कोई दगा देके साथ होता है।
कोई जिंदगी देके सिला देता है।।

कोई चुपचाप रोता रहता है।
कोई अश्कों को प्याला बना देता है।।

शनिवार, 15 मार्च 2014

बुरा न मानो होली है...

केजरीवाल
********
दुर्वाषा की तरह बन गयो हे ‘‘आप’’।
घूम-घूम के खाली-पीली दे रहो हे श्राप।।
आम आदमी की महिमा हे बड़ी ही भारी।
टेम्पू, मैट्रो अ मर्सिटीज की करे सवारी।।

मोदी
****
रामकृपाल, रामविलास, हाय तेरा सपना।
राम नाम जपना, पराया माल अपना।।

सोनिया
*****
मैडम जी अब किसको दें इल्जाम।
चुनावी चक्कर में ‘‘माया’’ मिली न ‘‘राम’’।।

मुलायम
******
सब किया-धरा गुड़-गोबर भय गयो।
बेट को कुर्सी दियो, ढीले तेबर भय गयो।।


गुरुवार, 6 मार्च 2014

जास्ती केजरीवाल बनने का नै......

जन्नत गुजरात में है, मान लो,
फालतू में सान-पट्टी करने का नै।

मार-कुटाई होगी,
ऑफिस पे चढ़ने का नै।

67 साल से लूट, बांट खा रहे,
59 दिन में भागने का नै।

जमाना बदल गया, तुम भी बदलो,
"चिल्लर" के डर से लंगोटी बांधने का नै।

पोल्टिक्स करनी हो तो
धर्म, जाति, वंश
सत्ता, कुर्सी, नेता
कॉरपोरेट, भ्रष्टाचार
का पैर पूजो,

जास्ती केजरीवाल बनने का नै.....
जास्ती केजरीवाल बनने का नै.....

शनिवार, 1 मार्च 2014

अहमक (चंद टुकड़े)

दुनिया-ए-बाज़ार में रहा अहमक की तरह।
साथी तुझे सौदागरी नहीं आती।

कुछ मोल भाव भी हो रिश्तों में। 
तुझे तक़ल्लुफ़ की बाज़ीगरी नहीं आती।
****************************************
वही शाम, वही सुबह है।
ठहरी जिंदगी, बंजर है।।

वक्त ही न मिला की खुल के साँस ले सकूँ।
ये कैसी ग़ुरबत, ये कैसा मंज़र है।।

गैर तो गैर  है उनसे शिकवा कैसा।
यहाँ तो अपनों के हाथ में खंजर है।।
**********************************
बड़े बेमुरौअत हो, संग दिल हो।
जाने क्यूँ मेरी मोहब्बत में शामिल हो।।

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

नींद में हो क्या तुम?

1
पंजे बाली सरकार ने
भारत निर्माण का
नया नुस्खा दिया है।

रोटी/पानी
कपड़ा/मकान
और दवाई
की जगह

एटीएम/फ्लाई ओवर
मैट्रो/एयरपोर्ट...
खिसका दिया है....
2
शिवराज मोदी को मूंछ का
औ राहुल को पूंछ का बाल बता रहें है,
तो क्या अब
पंजे बाले सब मूंछ का बाल कटा रहें है...?
3
मोदी, पासवान को
साथ लेकर डींगे झार रहे है,
कहीं वे अपने पैर पे ही
तो नहीं कुल्हाड़ी मार रहे है?

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

इश्कतारी है.....


जबसे साथी पे इश्कतारी है।
हर पल उनकी खुमारी है।।

आँखों में फुल सा चेहरा।
दिल में खिली फुलबाड़ी है।।

होठों पे है हंसी हरदम।
ये कैसी लगी बीमारी है।।

जुस्तजू सी है हर सू उनका।
फिर भी मिलन में दुश्वारी है।।

हर शय में अक्स उनका है।
इश्क की ये कैसी बेकरारी है।।




(मेरे द्वारा खिची गयी एक बंजारन की तस्वीर) 

बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

अब कहां अंधेरों से डर लगता है?

अब कहां अंधेरों से डर लगता है?
साथ रहा इतना, की घर लगता है।।

तेरी जुल्फों की छांव बहुत है शकून के लिए।
बिछड़ा तो, फिरूंगा दर-व-दर लगता है।।

अमावश की रात, मिले थे हम-तुम अचानक।
उस रात की न होती सुबह, हर पहर लगता है।।

छुपा लेता है आगोश में अंधेरा, भला-बुरा सब।
इसपे भी है मोहब्बत का असर लगता है।।

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

रोज डे पे बीबी को गुलाब जो दिया...

रोज डे पे बीबी को गुलाब जो दिया।
मुफ्त का ही आफत मोल ले लिया।।

बोली

इतने सालो तक तो दिया नहीं, वह हड़क गई।
लाल गुलाब को देख सांढ़िन की तरह भड़क गई।।

जरूर किसी कलमुंही की नजर लगी है आपको।
तभी यह सब फितुर सूझा है मुन्ना के बाप को।।



मैंने कहा
डार्लिंग, अब जमाना हाई-फाई हो रहा है।
पुराना सामान अब बाय बाय हो रहा है।।

अब तो लोग रोज डे पर प्रेम का प्रदर्शन कर रहे है।
पत्नी को छोड़ फेसबुक, ट्युटर पे कईयों पर मर रहे है।

वैसे में मैं यह रोज लेकर जब आया।
फिर भी तुमको यह क्यों नहीं भाया।।

बोली
प्यार को गुलाबों से तौल कर बताते नहीं है।
जाओ जी, जताते वहीं जो निभाते नहीं है।







बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

घड़ियाली आंसू भी आंखों में यार होना चाहिए.....

घड़ियाली आंसू भी आंखों में यार होना चाहिए।
इस दौर में आदमी को दुनियादार होना चाहिए..

हों कहीं भी, खुश रहे हमदम अपना।
चाहने वालों के दिलों में ऐसा प्यार होना चाहिए।।

मिलने-जुलने का शायद यह भी एक बहाना हो।
मशरूफ जिन्दगी में कुछ न कुछ उधार होना चाहिए।।

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क्यों कोई साथी इतना मशहूर हो जाए।
कि वह अपनों से दूर हो जाए।।
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न शिकवा है,  मुझसे शिकायत भी नहीं है।
शायद उनको मुझसे मोहब्बत ही नहीं है।।
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ता उम्र करता रहा तेरे आने का इंतजार।
मेरी मैयत पे भी न आओगी, सोंचा नहीं था।।
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शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

वह मुझकों भी काफिर कहने लगा है..

अब कोई क्यों मुझसे खफा हो।
मैं खुद से ही खफा रहने लगा हूं।।

गैरों से अब शिकवा कैसा।
अपनों का तंज सहने लगा हूं।।

चापलूसों के दौर में सच बोल न दूं कहीं।
इसलिए मैं अक्सर चुप रहने लगा हूं।।

कहता हूं गर मोहब्बत ही है खुदा का मजहब।
वह मुझकों भी काफिर कहने लगा है।।

गुरुवार, 16 जनवरी 2014

नाप देता है आदमी



नाप देता है आदमी
जरा सा हंस-बोल 
क्या लिया
नाप देता है आदमी
औरत का पूरा देह
वामन की तरह...

औरत की देह
की चौहद्दी
उसकी गोलाई
से लेकर
चौड़ाई तक
सब कुछ
एक नजर में...

नहीं नाप पाता है
आदमी
ताउम्र
औरत की गहराई...

रविवार, 12 जनवरी 2014

मेंहदीं का सुर्ख रंग...और बिखरे छींटे,,,

वे दिलों से खेलने में बड़ी हुनरमंद,
टूटे दिलों से खेलकर भी मजा लेते है।

उनकी मेंहदीं का रंग सुर्ख यूं ही नहीं,
दिल के लहू को वह हथेली पे सजा लेते है।।

क्यूँ कोई साथी इतना मशहूर हो जाये।
कि वह अपनों से दूर हो जाये।
फिसलन और ठोकर भरी राहों पे तो सभी संभलकर चलते है।
तुम सीधी.सपाट राहों पे संभलकर चलना साथी।।

(एक्सप्रेस हायवे जादे खतरनाक होबो हैय भाय जी)
4
क्यूँ हर शख्स की गलतियाँ गिनाते हो साथी।
जहाँ में आदमी बसते हैए पैगम्बर नहीं बसते।
5
क्यूँ किसी को साथी तुम इतना है भाता।
तुम्हे तो बाजीगरी का हुनर भी नहीं आता।।
6
यूँ ही रूठ कर महफ़िल से चली जाती हो। 
कहो तो अब शिकवा किससे करें।।
एक तुम्ही हो जो मुझसे मोहब्बत कर बैठे।
कहो तो अब रुसवा किसको करे।।
7
अपनी वेवफाई का गिला कैसे करूँ
फिर से मोहब्बत का सिलसिला कैसे करूँ
खोकर भी तुमको पाने की आरजू जिन्दा है अभी
तुम्ही कहो की आज भी यह हौसला कैसे करूँ.

गुरुवार, 9 जनवरी 2014

देह बेच देती तो कितना कमाती...

(यह पुरानी रचना मैंने झाझा के आदिवासी ईलाके में कई दिन बिताने के बाद लिखी थी आपके लिए हाजिर है।)
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रोज निकलती है यहां जिन्दगी
पहाड़ों की ओट से,
चुपके से आकर भूख 
फिर से दे जाती है दस्तक,
डंगरा-डंगरी को खदेड़
जंगल में,
सोंचती है
पेट की बात।

ककटा लेकर हाथ में जाती है जंगल,
दोपहर तक काटती है भूख
दातुन की शक्ल में..

माथे पर जे जाती है शहर
मीलों पैदल चलकर
बेचने दतमन
और खरीदने को पहूंच जाते है लोग
उसकी देह..................

वमुश्किल बचा कर देह
कमाई बीस रूपये
लौटती है गांव
सोचती हुई कि अगर

देह बेच देती
तो कितना कमाती...............


(चित्र गूगल से साभार )