शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2014

धुंआ उठता है..



आंसू मेरे बहे 
भींगे उनके नयन
दर्द मुझकों मिला 
सजी उनकी गजल

न चिंगारी उठी
न आग लगी
फिर भी
जलन है
तपन है
और धुंआ भी उठता है

देखिए
बड़ी नफाशत से
साथी के जिंदगी का
शहर जलता है......

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (02-11-2014) को "प्रेम और समर्पण - मोदी के बदले नवाज" (चर्चा मंच-1785) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. Waah ! Kya baat.... Dard humko hua sazi unki nazam lajawaab !!

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