घर की सफाई करते
कूड़े़ को भी
उलट-पुलट
देख लेता हूं
कई बार..
बिना जांचे-परखे
कूड़ेदान में फेंकने का मलाल
रह जाता है
जीवनभर...
शायद कुछ महत्वपुर्ण हो?
जीवन की फिलॉस्फी भी
इसी तरह है
जाने कब, कहां, कैसे
जिसे हमने फेंक दिया
कूड़ा समझ कर
आज भी है उसके फेंके जाने का मलाल
सीने में एक टीस की तरह
शायद वह भी महत्वपुर्ण होता...