गुरुवार, 5 सितंबर 2019

सुनो प्रेम

सुनो प्रेम

अरुण साथी

सुनो प्रेम
अब तुम इस
पार मत आना
चाँद के उस पार
ही अपना घर बसाना

इस पार तो अब
बसेरा है नफरत का..

सुनो प्रेम
इस पार कहीं
धर्म तो कहीं जाति
और कहीं कहीं
औकात से तुम्हें
तौला जाता है

और कहीं तो
प्रेम लव जिहाद
भी हो जाता है..

फिर क्या
आदमी
आदमी को
अब यहाँ भून
के खाता है..

1 टिप्पणी:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 06 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं