मंगलवार, 17 सितंबर 2019

तितलियाँ

तितलियाँ
(अरुण साथी)
सबसे पहले कैद की
गयी होंगी
तितलियाँ!

फेंका गया होगा जाल
छटपटाई भी होंगी
तितलियाँ!

फिर कैद से उन्मुक्त होने
अपने पंखों को
फड़फड़ाई भी होंगीं
तितलियाँ!

फिर उत्कट आकांक्षा में
तोड़ दिए गए होंगे उनके पंख
तो रोई भी होंगी
तितलियाँ!

फिर लोकतंत्र के मसीहा
ने आकर मुक्त किया
और आह्लाद से दिग दिगंत
जयकार हुआ
तो क्या इस राजनीति को
समझ भी पायीं होंगी
तितलियाँ....

गुरुवार, 5 सितंबर 2019

सुनो प्रेम

सुनो प्रेम

अरुण साथी

सुनो प्रेम
अब तुम इस
पार मत आना
चाँद के उस पार
ही अपना घर बसाना

इस पार तो अब
बसेरा है नफरत का..

सुनो प्रेम
इस पार कहीं
धर्म तो कहीं जाति
और कहीं कहीं
औकात से तुम्हें
तौला जाता है

और कहीं तो
प्रेम लव जिहाद
भी हो जाता है..

फिर क्या
आदमी
आदमी को
अब यहाँ भून
के खाता है..