शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

"साथी" ने अर्ज़ किया है..

थोड़ी संजीदगी, थोड़ा एहसास दे दे ।
ऐ मोहब्बत, उनको भी मेरी प्यास दे दे ।।
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उनकी बेवफाई का कहीं शिकवा न करूँ ।
अपनी मोहब्बत को कहीं रुस्बा न करूँ ।।
ऐसी इल्म कोई खास दे दे ।।
ऐ मोहब्बत, उनको भी मेरी प्यास दे दे ।।
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शकून से ही जिंदगी गुजर नहीं होती ।
गम के बगैर जिंदगी मुख़्तसर नहीं होती ।।
मेरे महबूब को ये थोड़ी सी जज्बात दे दे ।
ऐ मोहब्बत, उनको भी मेरी प्यास दे दे ।।
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जिस्म तो बाजारू है, सिक्कों पे बिका करती है ।
हुश्न का टूटता गरूर कोठो पे दिखा करती है ।।
मेरी सदा रूह तक पहुंचे, ऐसी कोई हालात दे दे ।
ऐ मोहब्बत, उनको भी मेरी प्यास दे दे ।।
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