शुक्रवार, 16 मई 2014

नई सुबह.....नया आगाज

नई सुबह उम्मीद की हो
नई सुबह लाये विश्वास
नई सुबह समता की हो
नई सुबह जगाये आश

नई सुबह रोटी की हो

नई सुबह मिटाये बनवास
नई सुबह में भाईचारा हो
नई सुबह में मिटे सन्त्रश


नई सुबह रोजी की हो

नई सुबह लाये रोजगार
नई सुबह सूरज सा हो
हर घर रौशनी की हो बात

नई सुबह में नई पहल हो

चारो ओर चहल पहल हो
घृणा का नहीं कहीं दखल हो
आओ करें ऐसा आगाज़...
आओ करें ऐसा आगाज़...

रविवार, 11 मई 2014

कुलटा (मातृत्व दिवस पर)

चुपचाप बैठा सोंच रहा हूँ
क्या कुंती को  अधिकार नहीं था
कर्ण को मातृत्व सुख देती.....?

या कि कर्ण का वंचित पुरूषार्थ
दानवीर होकर भी
दम नहीं तोड़ दिया....?

या कि सीता को नहीं था
अधिकार
राजषी प्रसव सुख भोग का...?

या कि कबीर को नहीं था
अधिकार
माँ की ममता का...?

कौन है जिसकी वजह से
सूख जाती है
माँ के छाती का दूध
और
बिलखता रहता है
उसके अपने कोख का जना...
जिगर का टुकड़ा...

कौन है
जिसकी वजह से
आज भी है
कुंती और सीता
सोंच रहा हूँ मैं...






शुक्रवार, 2 मई 2014

प्रेम और ईश्वर

मीरा तब भी थी 
मीरा अब भी है 

कृष्ण के माथे तब भी कलंक लगा
कृष्ण के माथे अब कलंक है 

मीरा तब भी पापिन थी 
मीरा अब भी पापिन है 

प्रेम तब भी पाप था 
प्रेम अब भी पाप है 

प्रेम का तब भी खोजा गया कारण
प्रेम का अब भी खोजा जाता है कारण 

प्रेम का तब भी कोई कारण नहीं था 
प्रेम का अब भी कोई कारण नहीं है 

युग बीते 
ईश्वर तब भी थे
राक्षस अब भी है ....