शुक्रवार, 31 मई 2013

आंख में पानी नहीं रहा (गजल)


इस दौर में आदमी के आंख में पानी नहीं रहा।
आदमी है, आदमीयत की निशानी नहीं रहा।।

सज गए है घर-गली कागज के फूल से।
बाजार की खुश्बू का असर रूहानी नहीं रहा।।

आप तो मोहब्बत भी करते है सौदे की तरह तौल कर।
अब तो मोहब्बत में लौला-मजनूं की रूमानी नहीं रहा।।

शुक्रवार, 3 मई 2013

घृणा



उस दिन
कथित अधार्मिक 
मठाधीश को
अपदस्त कर 
गांव में जश्न मना
तो मैं भी बहुत खुश हुआ....

चलकर देखने गया
अपनी खुशी

नये मठाधीश
पुर्व में लिखे नाम वाले
शिलापट्टों को तोड़ रहे थे....

पता नहीं क्यों?
इस घृणा को देख
मैं फिर उदास हो गया.....