बुधवार, 25 मई 2011

आतंकियों के नाम आमंत्रण।




आईएसआई ने रची साजिश
हेडली के इस बयान को 
अखबारों ने प्रमुखता से खबर लगाया
साथ ही
कसाब की सुरक्षा पर 10 करोड़
का किस्सा भी बॉक्स में चिपकाया!

इस गड़बड़ झाले ने मेरा सिर चकराया?

तब क्या
  हमऐसा ही करते रहेगेें!
बीटी स्टेशन और ताज में
इंडियन मरते रहेगें!

तब
एक नेता जी ने मुझे समझाया..
भौया जी यह पोल-टिक्स है..

इसलिए हम
ऐसा ही करेगें
कसाब पर खर्च कर
आतंकियों को आमंत्रित करेगें.....

सोमवार, 23 मई 2011

मां का नाम क्या है?


















बचपन से ही
मां को लोग
पुकारते आ रहे हैं
‘‘रमचनदरपुरवली’’

या
सहदेवा के ‘‘कन्याय’’
बाबूजी जी भी पुकारते
बबलुआ के ‘‘माय’’
आज दादा जी ने जोर से पुकारा
अरे बबलुआ
देखा मां दौड़ी जा रही है।

उधेड़बुन में मैं सोंचता
आखिर इस सब में
मां का नाम क्या है?

जब मां गई थी ‘‘नैहर’’
तो पहली बार नानी ने पुकारा
‘‘कहां जाय छहीं शांति’’
फिर कई ने मां को इसी नाम से पुकारा..

फिर मैं
उधेड़बुन में सोचता रहा
आखिर इस सब में
मां का नाम क्या है?

कई सालों से मां नैहर नहीं गई है
अब मां को शांति देवी पुकारता है
तो मां टुकुर टुकुर उसका मुंह ताकती है
शायद
मेरी तरह अब
मां भी उधेड़बुन है
आखिर इस सब में
उसका का नाम क्या है?

बुधवार, 18 मई 2011

गुनहगार-(गजल)



यह दुनिया क्या, इसके सितम क्या,
जितने दुनियादार होगे, उतने सितम का एहसास होगा।

पल भर में जहां बात बदल जाती है,
ऐसी दुनिया में, है कौन सितमगर किसे याद होगा।

वह जिसने कहा था जान देगें तेरे खातीर,
कब सोंचा था, वही मेरी जां का तलबगार होगा।

बात गुनाहों की कभी अब न करो,
आइने में अपना ही चेहरा शर्मसार होगा।

आसमां की बुलंदी पर जब देखा सबने,
किसने सोंचा था, बिना पंख के परवाज होगा।

सोमवार, 16 मई 2011

अपनी अपनी सुबह

सुबह सबका अपना अपना होता है 
और उसका सुख भी तभी,
सूरज उगने से पहले रोप देते है
सभी अपनी अपनी खुशी।
 
मैया की सुबह  
सीता-राम के साथ होती है 
और कानों में गुंजती है 
घंटी की टन टन।
 
बीबी की सुबह 
चाय की उस प्याली के साथ होती है 
जिसकी गर्म प्याली 
जब उंगली को छूती है 
तब चौंक और चिढ़ कर जगता हूं मैं। 

बाबू जी की सुबह 
गाय-बछिया 
गोबर-गौंत 
और  
हरियरी के साथ साथ  
दुनिया भर की चिंताओं के साथ होती है।


मेरी सुबह  
कोयल की कूहू कूहू 
बगैचा में पेंड़ों के गीत 
या फिर रास्ते में मिले  
सियार को देख ठीठक कर होती है।  
मैं तो अपनी सुबह का कोना अपने पास रखता हंू


आपको अपनी सुबह मुबारक..............

रविवार, 8 मई 2011

बुढ़ा बरगद

बुढ़े बरगद के नीचे
उस रात जब मैं तुम्हारी
आगोश में था 
सर्दी की वह रात बहुत गर्म थी। 
तुम्हारे इन्कार में छुपे इकरार को 
मैंने समझा 
तुम्हारे आलिंगन का वह 
नैसर्गिक आनन्द 
कोहरे की उस रात में
पसीने की शक्ल में छलक उठा था। 
उस रात की सुबह 
हम दोनों 
आसमान में
डूब-उतर रहे थे
जैसे 
हंसा ने चुग लिया हो
मोती.............




बुधवार, 4 मई 2011

मेरे महबूब

मिजाजे महबूब को न जान पाया मैंने।
उनकी खुशी में खुशी, उदासी में मातम मनाया मैंने।। 


महबूब के दामन में हो फूलों की महक।
चमन के खार को अपना बनाया मैंने। 


महबूब के आंखों में देखी जब भी नमी।
कोने में छूप कर आंसू बहाया मैंने।  


महबूब के होठों की एक हल्की हंसी। 
जमीने दोजख में भी जन्नत पाया मैंने।।  


दर्द तो मेरे सीने में भी बहुत है हमदम। 
तुम उदास न हो जाओं, उसको भी छुपाया मैंने।।